भड़ाना को हार की टीस, ठेकेदारों की मौज, पूर्व विधायक की रणनीति और बिगड़े बोल पर सवाल

K.D.

दूल्हा बनकर सजधज कर यहां पहुंचकर मंगलौर उपचुनाव में अपना भाग्य अजमाने वाले हरियाणा के पूर्व मंत्री करतार सिंह भड़ाना नजदीकी हार का कड़वा स्वाद चखकर वापस लौट जाएंगे। वे अब शायद ही भाविष्य में यहां का रुख करेंगे, क्योंकि उत्तराखंड की राजनीति से उनका दूर दूर तक सरोकार नहीं है। यही नहीं जहां जहां से उन्होंने जीत का स्वाद चखा , वहां वहां भड़ाना ने फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। यह बात उनके लिए मशहूर है। पर भले ही भड़ाना चुनाव हार गए, इसकी टीस उन्हें ताउम्र सालती रहेगी ही लेकिन उनके चुनावी ठेकेदारों की तो मौजा ही मौजा रही।

पूर्व विधायक की निकली हेकड़ी
हरिद्वार, बेहद धनाढ्य भड़ाना को मंगलौर उपचुनाव में उतारने के पीछे एक ही मुख्य वजह चर्चा में है, खैर उस बात को छोड़ भी दे तो उनके चुनावी प्रबंधन की कमान सत्ता के करीबी एक पूर्व विधायक ने संभाली हुई थी। यही नहीं पूर्व विधायक चाहते ही नहीं थे कि उनके गुट के अलावा कोई दिग्गज भाजपाई मंगलौर की सरजमीं पर पांव रखे। भड़ाना की इस तरह की घेराबंदी की गई थी, यह बात भाजपा में भी खूब उछली। पर, दिग्गजों ने चुप्पी साधे रखी। पूरा प्रबंधन एक पूर्व विधायक से लेकर उनके गुर्गे संभालते रहे। भड़ाना से किसे मिलना है, उन्हें कहां आना जाना है। किस किस को साधना है, यह सब पूर्व विधायक के इशारे पर ही होता रहा। जिले के ही कददावर भाजपा नेताओं को एक बार मंगलौर आने का न्यौता तक नहीं दिया, जिनकी छोटे छोटे वोट बैंक पर मजबूत पकड़ है।

नये नवेले सांसद भी रहे गायब
हरिद्वार, नये नवेले सांसद त्रिवेंद्र सिंह रावत भी मंगलौर उपचुनाव से गायब थे। वे इक्का दुक्का बार चुनाव के दौरान मंगलौर दिखाई दिए लेकिन उसके अलावा सांसद कभी नहीं दिखे। इसे लेकर भी कई तरह की चर्चाएं है। भाजपाई ही खुद इस मुददे को अंदरखाने हवा देने में जुटे है। अब चुनाव खत्म होने ही रविवार को त्रिवेंद्र रावत के अचानक यहां पहुंचने पर मंगलौर उपचुनाव की हार की सरगर्मियां दिन भर छाई रही।

बिगड़े बोल ने भी बिगाड़ा खेल
हरिद्वार, कड़े मुकाबले के बीच जीत से एक कदम दूर रह गई भाजपा का गेम बिगाड़ने में किंगमेकरों की ही मुख्य भूमिका रही। दरअसल, चुनाव के दौरान खुद चुनाव हार चुके किंगमेकरों के स्वंय को ताकतवर के तौर पर पेश करने के फेर में बिगड़े बोल सामने आएं। ऐसे में चुनाव जीतने के बाद के हालात को लेकर भी आमजन असहज हुए, यह भी एक मुख्य वजह बनी। चुनाव के दिन हुई हिंसा मे काजी निजामुउददीन की अश्रुधारा ने पूरा गेम बिगाड़ दिया, यह किसी से छिपा नहीं है।

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