
K.D.
इस वर्ष (संवत् 2081) शक 1946 में 31 अक्टूबर 2024 के दिन चतुर्दशी समाप्ति 15.53 है। चतुर्दशी समाप्ति के बाद अमावस्या शुरु होकर दूसरे दिन 1 नवंबर शुक्रवार के दिन सायं 18.17 को अमावस्या समाप्ति हो रही है। 31 अक्टूूबर को प्रदोषकाल में अमावस्याकी अधिकव्याप्ति है और दूसरे दिन 1 नवंबर शुक्रवार के दिन प्रदोषकाल में अमावस्या अल्पकाल है, फिर भी 1 नवंबर को लक्ष्मीपूजन करना ही उचित है।
जाने माने ज्योतिष विशेषज्ञ पवन पंत के अनुसार पुरुषार्थ चिंतामणि) अर्थात तीन प्रहर के उपरान्त पर अंत हो रही हो और दूसरे दिन प्रतिपदा साढितीन प्रहर के उपरान्त पर अंत हो रही हो ऐसी स्थिति में लक्ष्मीपूजनादि करें।
धर्मसिंधु, पुरुषार्थ चिंतामणि, तिथिनिर्णय, व्रतपर्व विवेक आदि ग्रंथों में दिये हुए वचनों का विचार करके दोनों दिन प्रदोषकाल में अमावस्या की व्याप्ति कम या अधिक होनेपर दूसरे दिन अर्थात अमावस्या के दिन लक्ष्मीपूजन करना शास्त्रसंमत है।
एक विशेष बिंदु यह भी है की जब प्रदोषकाल में अमावस्या अल्पकाल होती है तब उस दिन सायाह्नकाल और प्रदोषकाल इन दोनों कालों में अमावस्या रहती है तथा अमावस्या और प्रतिपदा का युग्म होने से युग्म को महत्त्व देकर प्रतिपदायुक्त अमावस्या के दिन लक्ष्मीपूजन करना चाहिए।
उपर्युक्त सभी वचनों पर विचार कर हमने 1 नवंबर 2024 शुक्रवार के दिन लक्ष्मीपूजन दिया है। यद्यपि शुक्रवार के दिन सूर्यास्त के पश्चात् अमावस्या प्रदोष में अल्पकाल है, तथापि सायह्नकाल से प्रदोषकाल समाप्त होने तक अर्थात सूर्यास्त के बाद सामान्यतः 2 घंटे 24 मि. तक के कालावधी में लक्ष्मीपूजन कर सकते है। इस के पूर्व दिनांक 28-10-1962, दिनांक 17-10-1963 तथा दिनांक 2-11-2013 इन तिथियों के दिन इसी प्रकार अमावस्या प्रदोष में अल्पकाल होनेपर अमावस्या के दिन लक्ष्मीपूजन पंचांग में दिया था।
1 नवंबर को प्रदोष व्यापिनी अमावस्या तिथि नहीं रहेगी इसलिए 31 को दिवाली मनाएं ऐसा तर्क दिया गया ।जबकि गणना के अनुसार दोनों ही दिन प्रदोष व्यापिनी है। प्रदोष काल शाम को सूर्यास्त के 48 मिनट तक रहता है। 31 को तो प्रदोष काल पूरा है ही। दूसरे दिन 1 नवंबर को सूर्यास्त 5 बजकर 41 मिनट पर हो रहा है तो प्रदोष काल 6 बजकर 29 मिनट तक रहेगा। इसमें अमावस्या 6:18 तक रहेगी इसका अर्थ अमावस्या प्रदोष व्यापिनी रहेगी।
धर्मसिंधु में लिखा है कि यदि प्रदोष व्यापिनी में 1 घटी से थोड़ी भी अधिक रहती है अमावस्या तो वह ग्राह्य है। एक घटी समाप्त होगा 6 बजकर 5 मिनट पर और अमावस्या रह रही है 6 बजर 18 मिनट तक। दूसरा यह कि जो अमावस्या प्रतिपदा से युक्त है उसे ग्रहण करना चाहिए। 1 नवंबर को अमावस्या प्रतिपदा से युक्त रहेगी। चतुर्दशी से युक्त जो है उसे ग्रहण नहीं करना चाहिए। उदया तिथि में भी दिवाली 1 नवंबर को पड़ रही है।
यदि कोई तिथि दो दिन प्रदोष व्यापिनी है तो शास्त्र का उल्लेख है कि दूसरे दिन वाली लेना चाहिए। स्कंद पुराण के वैष्णव खंड में कार्तिक महामात्य के अंतर्गत लिखा है कि जो तीनों तिथियां हैं दीपदान की, यथाक्रम त्रयोदशी, चतुर्दशी और अमावस्या…यदि ये संगव काल से पूर्व समाप्त हो जाती है पूर्व तिथि से युक्त वाली ग्रहण करना चाहिए। इसमें 1 नवंबर को संगव काल का समय आ रहा है सुबह 8 बजकर 39 मिनट से 10 बजकर 54 मिनट तक।
इसके बाद तक अमावस्या तिथि जारी होकर 06:18 हो रही है। इस मान से भी 1 नवंबर को दिवाली सही है। अधिकाधिक सिद्धांत में जो तिथि पड़ रही है वही सही है। यदि आप लक्ष्मी पूजन 31 को कर लेंगे तो पितृ कार्य 1 नवंबर को देव कार्य के बाद होंगे। देवकार्य से पूर्व पितृ कार्य करने का निर्देश है। 31 को अमावस्या के मध्यान्ह काल में पितृ कार्य होता है परंतु अमावस्या तो मध्यान्ह काल के बाद अपरान्ह काल में शुरू हो रही है। इसके अर्थ है कि 1 नवंबर दोपहर में पितृ कार्य और इसके बाद शाम को देव कार्य कर सकते हैं। यदि नंदा तिथि की बात करें तो 1 नवंबर को नंदा तिथि नहीं रहेगी जिसे की शुभ नहीं माना जाता है।
इस साल कार्तिक अमावस्या 31 अक्टूबर को दिन 3 बजकर 54 मिनट से प्रारंभ होगी। यह 1 नवंबर को शाम 6.18 पर समाप्त होगी। इस स्थिति में अमावस्या तिथि दो दिन प्रदोष काल में है। दृश्य गणित से निर्मित सभी पंचांगों में 1 नवंबर को ही लक्ष्मी पूजन शास्त्र से सम्मत माना गया है। धर्मशास्त्रों के अनुसार यदि दो दिन अमावस्या प्रदोष व्यापिनी हो तो दूसरे दिन वाली अमावस्या में ही दीपावली मनाई जानी चाहिए। इस तर्क के पीछे पितृ कार्य भी है।
पितृ देव पूजन के बाद ही लक्ष्मी पूजन करना उचित माना जाता है। पितृ देव पूजन से आशय 31 अक्टूबर को सुबह अभ्यंग स्नान, देव पूजन और दोपहर में पावण कर्म। यदि दीपावली 31 अक्टूबर को मनाई जाए तो ये सभी कर्म लक्ष्मी पूजन के बाद होंगे, जो शास्त्रोक्त नहीं होगा। अत: दूसरे दिन दीपावली मनाना शास्त्र सम्मत माना जाएगा। (निर्णय सिंधु प्रथम परिच्छेद के पेज 26 पर निर्देश है कि जब तिथि दो दिन कर्मकाल में हो तो निर्णय युग्मानुसार ही करें। अमावस्या और प्रतिपदा का युग्म शुभ माना गया है। अत: प्रतिपदा युक्त अमावस्या महान फल देने वाली होती है।
निर्णय सिंधु के द्वितीय परिच्छेद के पेज 300 पर लेख है कि ‘दण्डैक रजनी योगे दर्श: स्यात्तु परेअहवि। तदा विहाये पूर्वे दयु: परेअहनि सख्यरात्रिका:’ अर्थात यदि अमावस्या दो दिन प्रदोष व्यापिनी है तो अगले दिन करना चाहिए। तिथि निर्णय में उल्लेख है कि ‘इयं प्रदोष व्यापनी साह्या, दिन द्वये सत्वाअसत्वे परा’ अर्थात यदि अमावस्या दोनों दिन प्रदोष को स्पर्श न करे तो दूसरे दिन ही लक्ष्मी पूजन करना चाहिए।
इसका यह अर्थ भी है कि दोनों दिन प्रदोष को स्पर्श करे तो लक्ष्मी पूजन दूसरे दिन ही करना चाहिए। 1 नवंबर को अमावस्या साकल्या पादिता तिथि होगी, जो पूरी रात्रि और अगले दिन सूर्योदय तक मानी जाएगी। 1 नवंबर को पूरे प्रदोष काल, वृषभ लग्न व निशीथ में सिंह लग्न में लक्ष्मी पूजन किया जा सकता है। इसलिए 1 नवंबर 2024 को दिवाली मनाना शास्त्रसम्मत है।