
K.D.
बड़ा सवाल है कि कांग्रेस छोड़ने वाले चेहरों को गले लगाने में भला भारतीय जनता पार्टी आखिर क्या दिलचस्पी रही होगी क्योंकि ये सभी चेहरे हरिद्वार में कभी कांग्रेस का वनवास खत्म कराने में कामयाब नहीं हो सके थे। बात यही खत्म नहीं होती है बल्कि खुद भी चुनाव मैदान में उतरकर भाजपा से बुरी तरह परास्त हुए थे। एक नेताजी के पराक्रम का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि वर्ष 2007 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने बतौर कांग्रेस प्रत्याशी तीसरे स्थान पर आकर इतिहास रचा डाला था।
हां, पूर्व सीएम हरीश रावत के तरकश में शामिल इन जंग लगे तीरों को अपनाकर उन्हें चुनावी सीजन में झटका देने भर से ज्यादा कुछ नहीं है। सियासी पंडितों की माने यह बात भाजपा भी बखूबी समझती है। इस पूरे खेल को एक भाजपा विधायक के दिमाग की उपज के तौर पर देखा जा रहा है। देखना दिलचस्प होगा भाजपा को इन चेहरों से कितना फायदा मिलता है।
कांग्रेस से अपनी पहचान बनाने वाले पूर्व कांग्रेस शहर अध्यक्ष पुरुषोत्तम शर्मा वर्ष 2007 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के सिंबल पर मैदान में उतरे। वर्ष 2002 से 2007 तक एनडी तिवारी सरकार रही। तब पुरुषोत्तम शहर अध्यक्ष रहे। पर, फिर भी पुरुषोत्तम को महज 14,490 ही वोट मिले। उनकी जमानत जब्त होते होते हुए बाल बाल बची थी। सपा प्रत्याशी अंबरीष कुमार 16,453 मत पाकर दूसरे स्थान पर रहे थे और भाजपा प्रत्याशी मदन कौशिक ने 45 हजार वोट लेकर बड़ी जीत दर्ज की थी। इसी तरह वर्ष 2013 में अब भाजपा के हुए संजय महंत ने मेयर पद पर चुनाव लड़ा था, उन्हें भाजपा के मनोज गर्ग ने पटखनी दी थी। संजय महंत को 31,803 वोट मिले थे। मेयर बने मनोज गर्ग के हिस्से में 48,950 वोट आए थे। निर्दलीय मुरली मनोहर ने 9,744 वोट लिए थे।
पुरुषोत्तम हो या संजय महंत हो उन्हें पूर्व सीएम हरीश रावत की पैरवी के चलते ही चुनावी टिकट मिला था। कांग्रेस सेवादल के नेता राजेश रस्तौगी कभी कोई चुनाव नहीं लड़े है और न ही सत्यनारायण शर्मा। कुमुद शर्मा मुख्य धारा में कभी दिखाई ही नहीं दिए। पूर्व पालिकाध्यक्ष पारस कुमार जैन का परिवार राजनीति में कभी पकड़ नहीं बना सका। हां, पुराने कांग्रेसी परिवार से ताल्लुक रखने के कारण उनकी बहू मोनिका जैन को महिला कांग्रेस का जिलाध्यक्ष बनने का मौका जरूर मिला।