
जनघोष:-
हरिद्वार: बजरंग दल के निशाने पर आएं भाजपा जिलाध्यक्ष आशुतोष शर्मा गददीनसीन होने के साथ ही अपनी ही पार्टी के कई कददावर नेताओं की आंख में कांटे की तरह चुभ रहे हैं। एक दूजे के जानी दुश्मन माने जाने वाले जिले के मौजूदा- पूर्व विधायकों ने आशु के कदम रोकने के लिए जुगलबंदी की थी लेकिन बावजूद उसके सिर जिलाध्यक्ष का सेहरा सजने से रोकने में नाकामयाब रहे थे। एकाएक अपनी ही पार्टी के अनुसांगिक संगठन के खुलकर मुखालफत करने के पीछे भी अलग अलग सियासी मायने गिनाए जा रहे हैं, इसकी सबसे बड़ी वजह संपत्ति विवाद का ताजातरीन न होना है।

सवाल यह है कि आखिर जिलाध्यक्ष की कुर्सी पर आसीन होने के साथ ही इस विवाद को हवा क्यों दी गई, पूर्व में आशुतोष के खिलाफत क्यों नहीं की गई। ऐसे कई सवाल हवा में तैर रहे है। गुरुवार को शहर में तेजी से घटे घटनाक्रम को लेकर राजनैतिक गलियारों में तरह तरह की चर्चाएं है। बेशकीमती संपत्ति को लेकर बजरंग दल ने अपनी ही मुख्य पार्टी के जिलाध्यक्ष के खिलाफ झंडा बुलंद करने में जरा भी वक्त नहीं गंवाया। बकायदा भाजपा जिला कार्यालय पर ही दस्तक दे दी।

जिलाध्यक्ष का पुतला भी फूंका। बजरंग दल ने दावा किया कि उनकेप्रांतीय कार्यालय पर जिलाध्यक्ष की निगाहें गढ़ी है। उनके पास संपत्ति से जुड़े दस्तावेज नहीं है। सीधे सीधे आरोप जड़ा कि वे संपत्ति को हड़पना चाहते हैं। संपत्ति पर स्वामित्व का हक कोर्ट तय करेगा, यह बात साफ हो जाती है। पर, एक बड़ा सवाल यह है कि जिलाध्यक्ष की कुर्सी संभालते ही आशुतोष शर्मा को निशाने पर लिया गया।

यह बात हैरान करने वाली है। जिला महामंत्री, जिला उपाध्यक्ष रहते हुए उनके खिलाफ भी मोर्चा खोला जाना चाहिए था। खैर देर आएं, दुरूस्त आएं। यह भी कहा जा सकता है। राजनैतिक हलकों में चर्चा है कि दो मौजूदा विधायकों ने अपने कट्टर धुरविरोधी दो पूर्व विधायकों से संधी कर आशुतोष को जिलाध्यक्ष बनने से रोकने के लिए एडीचोटी का जोर लगा दिया था पर, संगठन में बेहतर पकड़ होने के चलते आशु को जिलाध्यक्ष बनने से रोक नहीं पाएं।

राजनैतिक पंडितों की माने तो अति महत्वकांक्षी आशुतोष शर्मा विधानसभा चुनाव में किसी सीट से दावेदारी कर सकते है, मुख्य इसी बात को लेकर कददावर नेताओं में बैचेनी है। देखना दिलचस्प् होगा कि जिलाध्यक्ष अपने खिलाफ बने माहौल को कैसे मैनेज कर पाते हैं, या फिर बजरंग दल उनकी सांसें फूलाता ही रहेगा।