
जनघोष-ब्यूरो
हरिद्वार: नगरनिगम भूमि घोटाले में जांच के बाद सरकार की ओर से सख्त कार्रवाई की गई है। इस मामले में बड़े अधिकारियों पर गाज गिरी है।

1:- डीएम हरिद्वार कर्मेन्द्र सिंह, आरोप: ज़मीन ख़रीदने की अनुमति देने में जिलाधिकारी कर्मेन्द्र सिंह की भूमिका और सत्यनिष्ठा संदिग्ध पाई गई।

2:- वरुण चौधरी, तत्कालीन नगर आयुक्त, हरिद्वार: आरोप: बिना उचित प्रक्रिया के भूमि क्रय प्रस्ताव पारित किया और वित्तीय अनियमितताओं में प्रमुख भूमिका निभाई।

3:- अजयवीर सिंह, तत्कालीन एसडीएम: हरिद्वार, आरोप: जमीन ख़रीद की प्रक्रिया के बीच में ही लैंड यूज बदल दिया, जिससे भूमि की कीमत तीन गुणा से भी अधिक हो गई। इन तीनों अधिकारियों को वर्तमान पद से हटाकर शासन में कार्मिक एवं सतर्कता विभाग से अटैच कर दिया है।

सस्पेंड किए गए अन्य अधिकारियों के नाम….
निकिता बिष्ट वरिष्ठ वित्त अधिकारी, नगर निगम हरिद्वार
विक्की, वरिष्ठ वैयक्तिक सहायक
राजेश कुमार रजिस्ट्रार कानूनगो
कमलदास मुख्य प्रशासनिक अधिकारी, तहसील हरिद्वार।

जाँच शुरू होने के समय पूर्व में सस्पेंड हो चुके अधिकारी….
प्रभारी सहायक नगर आयुक्त रविंद्र कुमार दयाल, प्रभारी अधिशासी अभियंता आनंद सिंह मिश्रवाण, कर एवं राजस्व अधीक्षक लक्ष्मीकांत भट्ट, अवर अभियंता दिनेश चंद्र कांडपाल

जाँच और कार्रवाई के अलावा तीन मुख्य बिंदु…..
1:- वरुण चौधरी के नगर आयुक्त के कार्यकाल का स्पेशल ऑडिट होगा
2:- यह नगर निगम की जिम्मेदारी होगी कि सेल डीड निरस्त करके पैसा वापस लाए
3:- प्रशासनिक जाँच के साथ ही विजिलेंस जांच भी होगी

नगर निगम हरिद्वार में ज़मीन ख़रीद घोटाले के मुख्य बिंदु….
19 सितंबर से शुरू होकर ज़मीन ख़रीद की कागज़ी प्रक्रिया 26 अक्टूबर को समाप्त हो गई उसके बाद नवंबर माह में तीन अलग अलग तारीखों में, अलग अलग लोगों से 33-34 बीघा ज़मीन ख़रीद ली गई।

ज़मीन को नगर निगम ने 53.70 करोड़ ₹ में ख़रीदी…
ख़रीद की प्रक्रिया के दौरान ही भूमि की श्रेणी में बदलाव का खेल हुआ। श्रेणी बदलने से 13 करोड़ की ज़मीन 53 करोड़ की हो गई। श्रेणी बदलने के लिए 143 की प्रक्रिया तीन अक्टूबर से शुरू होकर 21 अक्टूबर को ख़त्म हो गई, श्रेणी बदलने का यह समय भूमि ख़रीद की प्रक्रिया के दौरान का है।

आवेदन की तिथि से परवाना अमलदरामद होने तक मात्र सत्रह दिन में तत्कालीन एसडीएम अजय वीर सिंह ने सारा काम निपटा दिया। एसडीएम कोर्ट में एक अक्टूबर से जो मिश्लबंद बनता है उसने चढ़ाने के बजाय नया मिश्लबंद (राजस्व वादों की पंजिका) बना दिया।