
K.D.
हरिद्वार जेल ब्रेक कांड में कार्यवाहक अधीक्षक प्यारे लाल समेत छह कर्मचारियों को निलंबित कर देने से सूबे को हिलाकर रख देने वाली दुस्साहसिक वारदात को लेकर लीपापोती का खेल शुरू हो गया है। बड़ा सवाल यह है कि जेल अधीक्षक पर गाज आखिर क्यों नहीं गिरी जबकि जेल कैंपस की जिम्मेदारी तो जेल अधीक्षक की ही बनती है। भले ही जेल अधीक्षक छुटटी पर थे पर जेल की सुरक्षा को लेकर अधीनस्थों को दिशा निर्देश देने की जवाबदेही तो जेल अधीक्षक की थी।
दूसरा जेल कैंपस में रामलीला मंचन जेल अधीक्षक की स्वीकृति पर ही हो रहा था, फिर जेल अधीक्षक को क्लीन चिट देने से शासन की कार्रवाई महज औपचारिकता ही दिखाई दे रही है। यह आलम तब है जब जेल विभाग सूबे के सीएम पुष्कर सिंह धामी संभाल रहे है। जेल ब्रेक कांड के बाद जेल अधीक्षक की भूमिका केा लेकर सवाल खड़े हो रहे है। जेल में जब हाईसिक्योरिटी बैरक का निर्माण चल रहा था तो वहां सीढ़ी को खुलेआम क्यों रखा गया।

जेल अधीक्षक निर्माण स्थल पर गए होंगे ही, तो उन्हें सीढ़ी क्यों नहीं दिखाई दी। अगर सीढ़ी उनके छुटटी पर जाने के बाद वहां पहुंची थी तब भी जेल की सुरक्षा व्यवस्था को लेकर जेल अधीक्षक अधीनस्थों से विचार विमर्श करना आवश्यक नहीं समझते।
आखिर जेल की पूरी जिम्मेदारी तो अधीक्षक की ही है। संवेदनशील जेल में रामलीला मंचन हो रहा था, उसके बावजूद भी जेल की सुरक्षा को लेकर जेल अधीक्षक संजीदा नहीं थे, अगर होते तो हरिद्वार जेल ब्रेक कांड घटित न होता।
सूबे के मुखिया पुष्कर सिंह धामी अपनी कार्यशैली के लिए जाने जाते है लेकिन इस प्रकरण में महज अदने कर्मचारियों पर कार्रवाई का चाबुक चलने से हर कोई हतप्रभ है। जेल को पर्यटन स्थल बना देने की मुख्य भूमिका जेल अधीक्षक लंबे समय से अदा करते चले आ रहे है, उन पर गाज न गिरना आश्चर्य की ही बात है।