
K.D.
परिवारवाद में उलझे पूर्व सीएम हरीश रावत ने जब दो दशक पहले हरिद्वार में एंट्री की थी तब से हरिद्वार की आम जनता को अपना परिवार होने का उनका दावा हर चुनाव में झूठा निकला। केवल अपने राजनीतिक केरियर को लेकर ही रावत ने हरिद्वार का बखूबी इस्तेमाल किया बल्कि अपने परिवार को भी आमजन पर जबरन थोपने का कार्य किया।उसका नतीजा ये रहा की जनता ने रावत,उनकी पत्नी की विदाई कर की, पर बदले समीकरण में बेटी अनुपमा जरूर जीती पर अब बेटे को लेकर सवाल खड़े हो रहे है।
पत्नी हारी तो हरिद्वार के साथ हरीश ने किया सौतेला व्यवहार
राज्य बने के बाद से ही हार का दंश झेल रहे हरीश रावत ने हरिद्वार को अपनी कार्यस्थली बनाना शुरू कर दिया था ।बतौर प्रदेश अध्यक्ष भी हरीश रावत का अधिकांश समय हरिद्वार जिले में ही कटता था। उसके बाद 2009 में हरीश रावत को हरिद्वार लोकसभा सीट से बंपर जीत मिली । फिर केंद्रीय मंत्री की कुर्सी से होते हुए रावत अपने सीएम बनने के सपने को साकार कर पाए। खुद फिर से मजबूत होने पर हरीश रावत पत्नी रेणुका रावत को लोकसभा भेजना का दाव खेला लेकिन इस बार उन्हें नाकामी मिली। इसका खामियाजा हरिद्वार की पब्लिक ने बतौर सीएम रहते हुए सहा । फिर भी जिले से हरीश रावत का मोह कम नहीं हुआ।
2017 के विधानसभा चुनाव में वे हरिद्वार ग्रामीण विधानसभा सीट से लड़े तो भाजपा विधायक स्वामी ने उन्हें बुरी तरह हराकर भेजा। यहां से ही नहीं बल्कि कुमाऊं की एक सीट किच्छा से भी उनको निराशा ही मिली ।
2022 में भी हरीश रावत हरिद्वार ग्रामीण सीट से खुद मैदान में नहीं उतरे बल्कि अपनी विरासत को आगे बढ़ते हुए जनता पर अपनी बेटी को थोपने जैसा काम किया।उस वक्त भी हरीश रावत ने बेटी को हरिद्वार की पब्लिक को सौंप देने जैसी भावुक अपील कर फिर से एक बार आमजन को अपनी तरफ साध लिया था। उसी का नतीजा बेटी की जीत के साथ आया ,हालांकि रावत खुद कुमाऊं की सीट से फिर से हार गए ।इस लोकसभा चुनाव में हरीश रावत के मैदान में न होने की बात सामने आ रही थी हालांकि जब कांग्रेस हाई कमान ने टिकट की घोषणा की तब उनके बेटे वीरेंद्र का अप्रत्याशित नाम सामने आया।
जाहिर है की हरिद्वार को अपना परिवार बताने वाले रावत के लिए असल में अपना परिवार पहले है। उसी का ही नतीजा है कि उनके बेहद करीबी उन पर परिवारवाद का आरोप लगाकर भाजपा की गोद में जाकर बैठ गए ।रुड़की, हरिद्वार से लेकर देहरादून तक रावत के करीबी लगातार उन्हें झटके पर झटके दे रहे हैं। ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि वीरेंद्र की किस्मत का ऊंट किस करवट बैठता है।