
K.D.
पैसा, पैसा और सिर्फ पैसा। जी हां, एक थानेदार के लिए केवल पैसा ही माईबाप बन रह गया है। फिर चाहे किसी को डराना धमकाना पड़े, या फिर झूठी शिकायत पर केस रजिस्टर्ड ही क्यों न करना पड़े। बस थानेदार साहब को अपना रोजाना का टॉरगेट जो पूरा करना है। क्षेत्र में आग लगे या कोई वारदात घटित हो, कोई फर्क नहीं पड़ता। आसानी से केस वर्कआउट हो गया तो ठीक वरना ठंडे बस्ते में डाल देना उनकी आदत में शुमार है। बस, लक्ष्मी जी आती रहनी चाहिए। मुख्य एजेंडा यही है। सोते वक्त भी साहब केवल पैसे की टेंशन लेते तो सुबह उठकर आंख मलने के साथ ही उन्हें लक्ष्मी के दर्शन होने चाहिए। ऐसा अपने अधीनस्थों से बोलते है। उन्हें चैन भी तभी मिलता है, जब रोजाना मुटठी बेहद गर्म होती है।
दिखते है चुनमुन, पर है बड़े शातिर
थानेदार साहब दिखने में तो चुनमुन से लगते है पर असल में वे बेहद ही शातिर है। एसओ साहब जिस क्षेत्र के साहब बहादुर है, उस क्षेत्र के चप्पे चप्पे से पहले से ही वाकिफ है। उन्हें बेहद अनुभव है। क्षेत्र में कौन कौन जरायम पेशेवर है, उनकी लिस्ट छोड़िए नाम मुंहजुबानी रटे हुए हैं। जरायम पेशेवर अब उनकी दुधारु गाय है। यही नहीं कोई प्रकरण थाने की चौखट पर पहुंचता है, उसकी सुनवाई तब होती है जब साहब गांधी जी दर्शन कर लेते है। फिर अगड़ाई लेते हुए साहब की आंखों में चमक देखते ही बनती है।
शिवालिक नगर में चाहिए कोठी
मलाई चाट रहे थानेदार साहब अब करोड़ों की कोठी लेने की जुगत में जुट गए है। चूंकि उनकी महीने की कमाई लाखों में है, लिहाजा उन्हें कोठी लेने में कोई दिक्कत नहीं है। बस हां, उन्हें कोठी शिवालिक नगर में चाहिए। उनकी यही शर्त है। अब लगी है चेलों की फौज साहब के लिए कोठी ढूंढने में। भाई आखिर कमाई भी जो एडजेस्ट करनी है।