
K.D.
हरिद्वार जेल ब्रेक कांड में डिप्टी जेलकर प्यारेलाल समेत छह जेल कर्मचारियों को बलि का बकरा बनाया गया जबकि लापरवाही के असल जिम्मेदार जेल अधीक्षक मनोज आर्य जस के तस अपने पद पर बने हुए है। जेल ब्रेक कांड के बाद जेल अधीक्षक की भूमिका को लेकर कई सवाल अभी भी जस के तस है। जेल ब्रेक कांड में लापरवाही जेल प्रशासन की ही है, यह तो साफ है।
पर, घटना घटित होने के बाद हरिद्वार पुलिस को इस बाबत सूचना न देना, उससे भी बड़ी लापरवाही ही है। बड़ा सवाल यह है कि भले ही जेल अधीक्षक मनोज आर्य छुटटी पर थे तो क्या जेल ब्रेक की सूचना उन्हें डिप्टी जेलर ने समय रहते नहीं दी होगी। ऐसा संभव ही नहीं है। अगर उन्हें सूचना दी गई थी तो उन्होंने हरिद्वार पुलिस को इतनी बड़ी वारदात की जानकारी क्यों नहीं दी। अगर जेल अधीक्षक ने हरिद्वार पुलिस से संपर्क साधा होता तो निश्चित तौर पर कैदी रात में ही दबोच लिए जाते।
जेल कैंपस में तीन दिन से जेल ब्रेक काप्लॉन गढ़ा जा रहा था, पर किसी को भनक तक नहीं हुई। जेल अधीक्षक की अपनी ही जेल पर पकड़ नहीं है, यह घटना यह भी दर्शाती है। क्योंकि किसी भी जेल के अंदर कैदी ही जेल अफसरान की आंख कान होते है, यही नहीं कई कई संतरी भी जेल कैंपस की हर गतिविधि पर कैदियों की बदौलत निगाह बनाए रखते है। यही नहीं जेल अधीक्षक हल्द्वानी गए थे। उन्होंने इतनी बड़ी वारदात के घटित होने पर रात को ही वापस लौटना आवश्यक क्यों नहीं समझा। बताते है कि सुबह होने पर ही जेल अधीक्षक यहां पहुंचे थे, क्या यह लापरवाही नहीं है। सीएम पुष्कर सिंह धामी जेल विभाग के मुखिया है, पर छोटे कर्मचारियों पर चाबुक चलने से कई सवाल खड़े हो रहे हैं।