
जनघोष-ब्यूरो:-
हरिद्वार: नगर निगम भूमि खरीद घोटाले से सुर्खियों में आए एक छोटे साहब का यह कोई पहला कारनामा नहीं है बल्कि छोटे साहब पूर्व में भी कई बड़े खेल को अंजाम दे चुके हैं। सबसे बड़ा खेल सलेमपुर में ग्राम सभा की बेशकीमती भूमि को एक प्रॉपर्टी डीलर को सौंप देना है।

बाकायदा छोटे साहब ने चाहरदिवारी तक की जिम्मेदारी बखूबी निभाई। बताते हैं कि इस भूमि को लेकर भी वारे न्यारे हुए है। मौजूदा समय में नगर निगम भूमि खरीद घोटाला सुर्खियों में है। सिस्टम के हाथ भूमि खरीद में कैसे रंगे हैं यह है उसका लैंड यूज से साफ है। लैंड यूज बदलकर सर्किल रेट को कई गुना तक करके इस खेल को अंजाम दिया गया।

इस पूरे प्रकरण में नगर निगम और तहसील प्रशासन की मुख्य भूमिका है। लैंड यूज को लेकर संदिग्ध एक छोटे साहब ने कुछ माह पूर्व ऋषिकुल विद्यापीठ की बेशकीमती भूमि को भी राजस्व अभिलेखों में माफियाओं के नाम दर्ज कर दिया गया। राजस्व परिषद का फैसला उस भूमि पर अपना दावा कर रहे माफियाओं के हक में हो गया था।

राजस्व परिषद के फैसले का परवाना अभी जिले में भी नहीं पहुंचा था, इससे पहले ही तहसील प्रशासन ने माफिया का नाम राजस्व अभिलेखों में दर्ज कर दिया था। हैरानी की बात तो यह है जिलाधिकारी उस खुद संस्था के अध्यक्ष हैं। एक बार भी उनसे राय मशवरा करने की जरूरत नहीं समझी गई थी।

अंत में संस्था की सचिव सिटी मजिस्ट्रेट कुसुम चौहान ने दाननमा ढूंढ निकाला था, फिर राजस्व परिषद में अपील की गई थी। पर राजस्व अभिलेखों में माफिया का नाम दर्ज करने में छोटे साहब की चुस्ती फुर्ती के पीछे बड़ी कहानी है। यही नहीं सलेमपुर में ग्राम सभा की भूमि को भी प्रॉपर्टी डीलर की भूमि में विलय कर दिया गया।

बताते हैं कि इस प्रकरण में भी मोटी डील हुई थी। लगातार छोटे साहब एक से एक बढ़कर कारनामे को अंजाम देते रहे लेकिन हरिद्वार से लेकर देहरादून तक के आला अफसर धृतराष्ट्र बने रहे। समाजसेवी मुन्नवर हसन का कहना है कि सलेमपुर के घोटाले की भी जांच होना बेहद जरूरी है, जिससे दूध का दूध पानी का पानी हो सके।