ना शक ना कोई सवाल, थानेदार साहब पर भारी सिपाही जी का भौंकाल

K.D.

आपने किसी थानेदार का बॉस एक कांस्टेबल के होने की बात सुनी है, अगर नहीं सुनी है तो आप गलत है। हरिद्वार के एक थाने की यही तस्वीर यही हकीकत बयां कर रही है। एसओ साहब अपने मातहत कांस्टेबल का ही ऑर्डर फॉलो करते है। इसकी वजह क्षेत्र का अनुभव होना नहीं बल्कि कांस्टेबल को वहां की दुधारू गायों की बखूबी समझ होना है। यही नहीं कांस्टेबल की काबलियत का नमूना उस थाने में पांचवीं दफा पोस्टिंग होना भी है।

वैसे तो पुलिस महकमे में नियम कायदे सिफारिश के आगे ध्वस्त हो जाते है, इसका जीता जागता उदाहरण एक मलाईदार थाने में तैनात कांस्टेबल है। पांचवीं दफा थाने में तैनाती पाने में सफल रहे कांस्टेबल से कोई ड्यूटी नहीं ली जाती है। वह दिन भर थाने के गेट के इर्द गिर्द मंडराता है। उसका फोकस केवल मलाईदार प्रकरण पर रहता है, यही नहीं औद्योगिक इकाईयों में भी कांस्टेबल की गजब सेटिंग गेटिंग है। पलक झपकते ही औद्योगिक इकाई में बन रहे हर प्रोडेक्ट को साहब के समक्ष पेश कर देता है।

वो बात अलग है, साहब के ऑर्डर को पूरा करने के साथ साथ वह भी पूरी मलाई चाट लेता है। हर मलाईदार प्रकरण की डील नेगी ही करता है। थाने में भी उसकी ठसक हनक अलग ही है। मजाल है भला कोई दरोगा भी उसे टोक दे, उसी वक्त एसओ साहब की भौंहे चढ़ जाती है। अब संगी साथी जलते है तो जले, उसके भौकाल के आगे सब बौने जो ठहरे।

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