
जनघोष-ब्यूरो
नौकरी ने अभी अगड़ाई भी नहीं ली है और खाकीधारी एक चुनमुन से दिखने वाले एक साहब ने अभी से ही सोने चांदी के बर्तन में जायके का लुत्फ लेने के ख्वाब बुन लिए है, उन्हीं ख्वाब को हकीकत में तब्दील करने में वे पूरी शिद्दत से जुट गए है, फिर चाहे औद्योगिक इकाइयों के वाहन के पहिए थामने हो या फिर ट्रांसपोर्टर पर नकेल कसनी हो,

यही नहीं अधिनस्थ का भी वे गला दबाने में दिन रात जुटे है, बेबाकी से बोलते है, डायरेक्ट हूं, भविष्य में फंसोगे, गुजरात कैडर के अपने गुरु से मिलने वाली हर टिप्स को अपनाकर बस जूस निकालना उनका मकसद बन गया है, सीनियर जूनियर की परिभाषा भी शायद साहब को पता नहीं है

लिहाजा हेलीकॉप्टर बने यहां से वहां उड़ रहे है, जैसे हनुमान जी की भांति कोई संजीवनी बूटी हाथ लग गई हो, जी हा खाकी के गलियारों में एक साहब की अजीबों गरीब हरकतें रह रह कर गूंज रही है, खुद को टेक्नोलॉजी का खिलाड़ी बताने वाले साहब को मलाई चाटनी है पर तौर तरीके पता नहीं है,

लिहाजा वे उसके लिए खूब उछल कूद कर रहे है, मलाई का सवाल है आखिर नए नए तरीके निकाले जा रहे है, कही से तो बरसात हो फैक्ट्री, ट्रांसपोर्टर, खनन के ट्रक, ऑटो विक्रम स्टैंड, पार्किंग से लेकर तमाम जगह हाथ पैर मारे जा रहे है।
अधीनस्थों पर भी गुर्रा रहे है,

कंधे पर लगे बेच को नोचकर दिखाया जा रहा है, वे क्या है, सीधे आए है, कैरियर बिगाड़ देंगे, भविष्य में, अब साहब से डरे सहमे सब घूम रहे है, साहब को भूलने की भी बीमारी है, भगवान जाने अगर कभी जिले की कमान मिली तो बंटाधार होना तय है।
नोट:अभी बहुत है साहब की किस्से कहानियां…..