“हरिद्वार की दो तस्वीरें: एक रिक्शेवाले की सच्चाई ने इंसानियत को जगाया, दूसरी अफसरों की बेईमानी ने भरोसे को हिलाया..

जनघोष-ब्यूरो:-
हरिद्वार:
कुंभनगरी हरिद्वार से दो तस्वीरें एक साथ सामने आई हैं, जो समाज की दो विपरीत वास्तविकताओं को उजागर करती हैं। एक ओर इंसानियत और ईमानदारी की चमक है, तो दूसरी ओर सरकारी तंत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार का अंधेरा।

रिक्शेवाले शिव सागर शाह ने रच दिया ईमानदारी का इतिहास… हरिद्वार की सड़कों पर मेहनत की गाड़ी खींचने वाले गरीब रिक्शाचालक शिव सागर शाह ने ईमानदारी की ऐसी मिसाल पेश की है, जिसने हर किसी का दिल छू लिया।

पंजाब से आए यात्रियों का जेवर और नगदी से भरा बैग रिक्शे में छूट गया था, जिसे शिव सागर ने बिना देर किए यात्रियों को लौटा दिया। इस नेक काम के लिए वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (एसएसपी) प्रमेंद्र सिंह ने स्वयं शिव सागर को सम्मानित किया और उनकी ईमानदारी को सराहा।

शिव सागर का कहना है, “मैंने गरीबी को गले लगाया है, लेकिन ईमान को कभी नहीं बेच सकता।” उनकी ये बातें आज के दौर में समाज को आईना दिखा रही हैं कि सच्चाई और इंसानियत आज भी जिंदा है, बस उन्हें पहचानने वाली नज़र चाहिए।

दूसरी तस्वीर: सरकारी अफसरों ने बेच डाली ईमानदारी… वहीं दूसरी ओर हरिद्वार नगर निगम और तहसील प्रशासन से जुड़ी एक खबर ने प्रशासनिक व्यवस्था की पोल खोल दी है। सरकारी भूमि खरीद में करोड़ों रुपये की गड़बड़ी सामने आई है। आरोप है कि कुछ अधिकारियों ने नियमों को ताक पर रखकर निजी स्वार्थ के लिए राज्य सरकार को करोड़ों रुपये का चूना लगाया।

खुलासे के अनुसार, अफसरों ने बाजार मूल्य से कई गुना अधिक दामों पर भूमि खरीद की स्वीकृति दी, जिसमें नियमों और सार्वजनिक हितों की पूरी तरह अनदेखी की गई। यह कृत्य न सिर्फ भ्रष्टाचार को उजागर करता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि कैसे कुछ लोग वेतन और पद से संतुष्ट न होकर अपनी भूख और लालच को इंसानियत से ऊपर रख देते हैं।

एक सवाल: क्या अब भी इंसानियत जिंदा है…? जहां एक ओर शिव सागर जैसे लोग समाज को उम्मीद की किरण देते हैं, वहीं दूसरी ओर भ्रष्ट अधिकारियों की करतूतें व्यवस्था पर विश्वास को डगमगाती हैं। एक ने जेवर लौटाकर “मानवता” की असली परिभाषा दी, वहीं दूसरे ने “नैतिकता” को मुनाफे में बेच डाला। कुंभनगरी की ये दो तस्वीरें हमें यह सोचने पर मजबूर करती हैं कि हमें किस दिशा में बढ़ना है — ईमानदारी की राह पर या भ्रष्टाचार की दलदल में?

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